इन लकीरों को ज़मीन ही पे रहने दो दिलों पे मत उतारो
दिखाई देते हैं दूर तक अब भी साए कोई
मगर बुलाने से वक़्त लौटे न आये कोई
चलो न
फिर से बिछायें दरिया
बजायें ढोलक
लगाके मेहँदी
सुरीले टप्पे सुनायें कोई
पतंग उड़ायें छतों पे चढ़के मोहल्ले वाले
फलक तो सांझा है उसमें पेचें लड़ाए कोई
उठो कबड्डी-कबड्डी खेलें सरहदों पर
जो आये अबके तो लौटकर फिर न जाये कोई
नजर में रहते हुए जब तुम नज़र नहीं आते
ये सुर मिलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते
नजर में रहते हो जब तुम नज़र नहीं आते
ये सुर बुलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते
इन लकीरों को ज़मीन ही पे रहने दो
दिलों पे मत उतारो ...
मगर बुलाने से वक़्त लौटे न आये कोई
चलो न
फिर से बिछायें दरिया
बजायें ढोलक
लगाके मेहँदी
सुरीले टप्पे सुनायें कोई
पतंग उड़ायें छतों पे चढ़के मोहल्ले वाले
फलक तो सांझा है उसमें पेचें लड़ाए कोई
उठो कबड्डी-कबड्डी खेलें सरहदों पर
जो आये अबके तो लौटकर फिर न जाये कोई
नजर में रहते हुए जब तुम नज़र नहीं आते
ये सुर मिलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते
नजर में रहते हो जब तुम नज़र नहीं आते
ये सुर बुलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते
इन लकीरों को ज़मीन ही पे रहने दो
दिलों पे मत उतारो ...
1 comment:
This is so beautiful Pal.loved it.
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